Tuesday 6 September 2016

रात और चाँदनी



रात के आगोश मे
चाँदनी जो पिघल रही है॥
काजल सरीखी काली रात मे
रोशनी सी जल रही है॥
सरक रही धीरे धीरे घूँघट जो बादलों की,
हवाएँ उड़ा रही हया जो आंचलों की,
लोक लाज की दहलीज़ लांघ आज चाँदनी ,
खुद से निकल रही है॥
रात के आगोश मे
चंदनी जो पिघल रही है ॥
तारों की जमीन पर पाँव रखे,
हर कदम वो रात के पास आ रही है,
रात भी उसका दमन थामे खिच रहा उसे अपनी ओर,
सन्नाटे सी ये रात और गहरा रही रही है॥
हर एक दूरियाँ खत्म हो रही अब ,
रात भी तड़प रहा सामने को इसे खुद मे,
एक दूजे को होने के लिए दो रूनहे मचल रही है ॥
रात के आगोश में
चाँदनी जो पिघल रही है ॥
हाथ थामे ये रात की
छोड़ रही बादलों का दामन ,
हो रही पराई ये चाँदनी हर बंधन से,
बढ़ रही उस गली जहां है उसका साजन ,
डोली सजी है आज तारों की
और चाँदनी अपनी दुल्हन बन रही है ॥
रात के आगोश मे
चाँदनी जो पिघल रही है ॥ 

Monday 5 September 2016

तुम वही थे ॥



तुम आए गुजरे थे राहों से होकर मेरे,
पर समझ न सके हम के तुम वही थे ॥
दहलीज़ पर रुके थे तुम इत्तेफाक से मेरे,
पर समझ न सके हम के  तुम वही थे ॥
शिकायते और दुआएं बदस्तूर जारी थी खुदा से
गुमान तो ये भी था के तुझे तेरी आहाट से पहचान लेंगे हम ,
तुम आए , रुके भी और चले बेरुख भी हो लिए
पर समझ न सके हम के तुम वही थे ॥
खिलौने से हो गए रिश्ते और बच्चो से हम
शिकायत रहती जितना मिल जाए कम ही है ,
न मिले खिलौने तो रोना धोना
मिल जाए तो कदर नहीं और नए और बेहतर की फिराक मे हम,
शायद यही वजह थी जो हम समझ न पाये तेरी एहसास को
तुम थे वही
पर समझ न सके हम के तुम वही थे ॥
चलो खैर तुम रुके नहीं पर आए तो सही,
खुसकीसमाती है के अपने होने का एहसास दिलाये तो सही।
इसी एहसास इसी बात की खुसी है॥
दिनो से सिकायत रहेगी तुम्हें रोक न पाये ये कुछ देर और
जिस रोज तुम आए अब हमे हर रात से खुसी है ॥
अब तनहीयों और चाँद से ताउम्र तेरा जीक्र करेंगे
के हाँ तुम वही थे
हाँ तुम वही थे ...