Wednesday 31 August 2016

ए मेरा भला चाहनेवालों


ए मेरा हीत चाहने वालों
चलो तुम भी अपना फर्ज़ निभा लो,
हो गया है वक़्त तुम्हारे अपनापन दिखने का
मेरी बेबसी पे चलो तुम भी तरस खा लो ...
दिखा लो अपना अपनापन
दिखावे की सहानुभूति की बहोत जरूरत है मुझे भी ।
बड़प्पन दिखने का मौका है तुम्हारे पास,
और हक़ है तुम भी ॥
लो हूँ बैठा हार कर मैं भी ,
आओ अपनी नसीहत लेकर
चाहो तो अपना दुखड़ा भी सुना लो ॥
ए मेरा हीत चाहने वालों
चलो तुम भी अपना फर्ज़ निभा लो॥
व्यापार ये सहानुभूति का बड़ा खूब है ना,
कतरा फर्क नहीं पड़ता आपके दर्द से किसी को,
आ जाते बस सब सहानुभूति देने
पर दर्द बांटने को तैयार कोई ना।
लेन देन का ये व्यापार फिर भी बदस्तूर जारी रहेगा ,
इंसानियत पर ये सहानुभूति का दिखावा
हुमेसा भरी रहेगा ...
चलो आज मुझे भी जरूरत है सहानुभूति की मेरे हितैषियों ,
अपना हाथ जरा आजमा लो,
ए मेरा हीत चाहने वालों
चलो तुम भी अपना फर्ज़ निभा लो,

मोहब्बत ??




कितने झूठे होते है ये
मोहब्बत के वादे ,
देख आज तू भी ज़िंदा है और मैं भी ॥
हक़ीक़त जो थे कभी
वो बन गए आज वादे,
देख मैं भी खुस हूँ और तू भी ॥
साँसो सरीखा था इश्क़ हमारा
जिस्म से चलकर रूहों मे बस्ता था इश्क़ हमारा,
कभी सुना नहीं था साँसो और रूहों के बिना
कोई जी सकता है यहाँ ,
बस कहने बातें ही थी वो सायद
देख तू भी जी रहा है ,
और मैं भी ॥
वादा तो ये भी था के क़यामत तक का साथ होगा,
चाँदनी रातो से आँसू भरे तनहाई तक साथ होगा,
पर चल दिये ऐसे अजनबी से
के मूड के भी देखना मुनासिब नहीं समझा आपने,
आफ्नो से लेकर परायों तक का सफर,
बहोत जल्दी तय किया आपने॥
बातें ही थी सायद सब ये,
देख तू भी नहीं शर्मिंदा है और ज़िंदा हूँ मैं भी ॥
कितने झूठे होते हैं मोहब्बत के वादे ॥

Sunday 28 August 2016

कश्म्कश



तेरे करीब आये
या तुझसे दुर जाये?
कशमकश में है दिल
ये रिश्ता कैसे निभाए?
तुमने तो खींच दी है
दोस्ती की लकीर बीच में,
उस लकीर के हम पार कैसे जाये?
तूझे पाने का अरमान भी है
तूझे खोने का डर भी।
कह दे तो तू तोड दे ना दोस्ती,
ना कहें तो किसी और का ना हो जाये तू,
मानता नहीं ये दिल मेरा
इस दिल को कैसे हम समझायें ...

Saturday 27 August 2016

मैं


ना धोखे से  ना तरस से ,
आए कोई तो आए बस  अपनेपन की  गरज से ॥
अकेला हु  पर  टूटा  नहीं मैं ,
आदत  है  भीड़  से अलग  रहने  की
ज़िंदगी  की दौड़ मे पीछे छूटा नहीं मैं,
आगे  बढ़ जाओ  या साथ निभाओ
मर्जी तुम्हारी दौड़ का  हिसा बनो
या कुछ पल सुकून के  साथ बैठ मेरे साथ बिताओ ॥
आओ तो साझा करने यादें हसीन
पर आओ एक अदब से ...
एक ढूंढो तो  लाखो  मिलेंगे,
मुझसे बेहतर बेतहाशा मिलेंगे॥
हाथ थामो उनका या साथ हो जाओ,
ज़िंदगी चाहे जैसे तुम वैसे बिताओ॥
दूर से ही मैं खुस हूँ अपनी शर्तो पे,
के बदला या झुका नहीं मैं
ज़िंदगी  और वक़्त  के किसी आजमाइसो से॥
लोग आए रुके  और चल दिये,
रात के मुसाफिर थे सारे,
अकेलेपन अंधेरा मिला तो मैं दिखा
फिर उजालों मे अपने रक़ीबों के साथ वो निकल दिये...
खुश हूँ मैं एक पड़ाव बनके
के जब सारे भाग दौड़ से तुम थक जाओगे,
आखरी सफर का पड़ाव सा हूँ मैं तेरे
मेरी ही आगोश मे तुम चैन की नींद पाओगे ...