Saturday 27 August 2016

मैं


ना धोखे से  ना तरस से ,
आए कोई तो आए बस  अपनेपन की  गरज से ॥
अकेला हु  पर  टूटा  नहीं मैं ,
आदत  है  भीड़  से अलग  रहने  की
ज़िंदगी  की दौड़ मे पीछे छूटा नहीं मैं,
आगे  बढ़ जाओ  या साथ निभाओ
मर्जी तुम्हारी दौड़ का  हिसा बनो
या कुछ पल सुकून के  साथ बैठ मेरे साथ बिताओ ॥
आओ तो साझा करने यादें हसीन
पर आओ एक अदब से ...
एक ढूंढो तो  लाखो  मिलेंगे,
मुझसे बेहतर बेतहाशा मिलेंगे॥
हाथ थामो उनका या साथ हो जाओ,
ज़िंदगी चाहे जैसे तुम वैसे बिताओ॥
दूर से ही मैं खुस हूँ अपनी शर्तो पे,
के बदला या झुका नहीं मैं
ज़िंदगी  और वक़्त  के किसी आजमाइसो से॥
लोग आए रुके  और चल दिये,
रात के मुसाफिर थे सारे,
अकेलेपन अंधेरा मिला तो मैं दिखा
फिर उजालों मे अपने रक़ीबों के साथ वो निकल दिये...
खुश हूँ मैं एक पड़ाव बनके
के जब सारे भाग दौड़ से तुम थक जाओगे,
आखरी सफर का पड़ाव सा हूँ मैं तेरे
मेरी ही आगोश मे तुम चैन की नींद पाओगे ...

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