Monday 5 September 2016

तुम वही थे ॥



तुम आए गुजरे थे राहों से होकर मेरे,
पर समझ न सके हम के तुम वही थे ॥
दहलीज़ पर रुके थे तुम इत्तेफाक से मेरे,
पर समझ न सके हम के  तुम वही थे ॥
शिकायते और दुआएं बदस्तूर जारी थी खुदा से
गुमान तो ये भी था के तुझे तेरी आहाट से पहचान लेंगे हम ,
तुम आए , रुके भी और चले बेरुख भी हो लिए
पर समझ न सके हम के तुम वही थे ॥
खिलौने से हो गए रिश्ते और बच्चो से हम
शिकायत रहती जितना मिल जाए कम ही है ,
न मिले खिलौने तो रोना धोना
मिल जाए तो कदर नहीं और नए और बेहतर की फिराक मे हम,
शायद यही वजह थी जो हम समझ न पाये तेरी एहसास को
तुम थे वही
पर समझ न सके हम के तुम वही थे ॥
चलो खैर तुम रुके नहीं पर आए तो सही,
खुसकीसमाती है के अपने होने का एहसास दिलाये तो सही।
इसी एहसास इसी बात की खुसी है॥
दिनो से सिकायत रहेगी तुम्हें रोक न पाये ये कुछ देर और
जिस रोज तुम आए अब हमे हर रात से खुसी है ॥
अब तनहीयों और चाँद से ताउम्र तेरा जीक्र करेंगे
के हाँ तुम वही थे
हाँ तुम वही थे ...

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