Wednesday 5 October 2016

जंग और इंसान


तबाही का ये मंजर देखो,
हरियाली को तरसती धरती ये बंजर देखो॥
हर एक जर्रा बयान कर रही दास्तां जंग की ,
जंग के हिमायतियों तुम ये मंजर देखो ॥
खून से सनी हुई ये खेते देखो ,
तबाही की कहानी सुनाती ये रेतें देखो ॥
जहां तहां बिखरे कटे हुए ये अंग देखो ,
जंग के हिमायतियों
तुम ये भयानक रंग देखो ॥
तड़पती चीखे , टूटती साँसे देखो ,
टूटती चुड़ियाँ उजड़ती मांगे देखो॥
गर्दिशों के वो दिन देखो ,
सिसकती हुई वो राते देखो,
बेटे को रोटी मान की आंखे देखो ,
बाप को गले लगाने को तरशती उन बच्चो की बाहें देखो ॥
उजड़ा हुआ वो सहर , बंजर बने वो गाँव देखो,
खून की नदी बहती हार जीत की वो नाओ देखो ॥
तुमने तो दिखा दी घर बैठे अपनी देशभक्ति ,
मिल गयी तसल्ली मिल जाएगा श्रेय
पर जिनहोने सबकुछ गवाया उनका हाल देखो ॥
घर बैठे तुम जंग का रंग देखो॥
अगर हम निभा रहे देशभक्ति
तो वो भी तो अपना फर्ज़ निभा रहे है,
क्यू लड़ी जा रही जंग
क्या होगा इससे हासिल
बिना सोचे ये बस जान गवाए जा रहे है ॥
जंग से कोई कुछ पता नहीं बस गवाता है,
गुनहगार तो बचे रह जाते है,  बेगुनाह मारा जाता है ॥
छोड़ जाते वो पीछे बस आफ्नो को रोने के लिए,
हो जाती ज़िंदगी वीरान उनकी
नहीं बचता कुछ फिर खोने के लिए ॥
जंग तो बस कुछ दिनो की बात है
फिर खत्म हो जाता है,
पर इसका दर्द और दाग ताउम्र रह जाता है ॥ 

No comments:

Post a Comment