Wednesday 17 February 2016

Aye Zindagi

कुछ पुछता मैं तुझसे ऐ जिंदगी ,
जो पहले था मै
क्या अब भी वहीं हुँ ?
क्या बदला इन सालों में
के वो नींद सुकुन की अब आती नहीं ,
पा लिया अब जब मकसद जिंदगी का
फिर क्यों वो खुशी चेहरे पर जगमगाती नही?
सब कुछ तो वही है
वही दुनीया वही सपने वही अपने ,
किस दोराहे पर छोड आया मै खुदको ,
किस मोड पर खो दिया मुझे सबने ?
पुछता तुझसे मै ऐ जिंदगी
बता, जो मैं पहले था ,
क्या अब मैं वो नही हुँ ?
पहले तो आती थी बेवजह की हँसी ,
अब मुस्कुरायें भी तो लगता
खुद पे एहसान कर रहा हुँ ।
ऐसी ही खुशनसीब जिंदगी तो चाही थी मैने, अब जीने से ही क्यो डर रहा हूँ?
सपने जब जाग गये
तो ऐसा क्यों लग रहा मै सो रहा हूँ ,
सितारों से भरी खुशनसीब जिंदगी मे भी मै,
अंदर ही अंदर क्यों रो रहा हू्ँ?
पुछता हूँ मैं तुझसे जिंदगी ,
बोल क्या मैं सही हुँ ?

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